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निर्भया कांड के दोषियों को फांसी देने से पहले बोला पवन जल्लाद- अब जीना मुश्किल हो गया पाँच हजार मे केसे गुजारा

पवन जल्लाद (Pawan Jallad) मेरठ (Meerut) की आलोक विहार कालोनी का रहने वाला है. उसका परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी जेल (Jail) में फांसी (Execution) देने का काम कर रहा है---------------------------------------------------------------------


नई दिल्ली. तिहाड़ जेल (Tihar Jail) में बंद निर्भया गैंगरेप (Nirbhaya Gangrape) कांड के दोषियों को फांसी (Execution) देने का रास्ता लगभग साफ हो गया है. उन्हें फांसी पर लटकाने की तैयारियां चल रही हैं. उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के मेरठ (Meerut) के रहने वाले पवन जल्लाद (Pawan Jallad) को बुलाने के लिए लेटर लिखा गया है. लेकिन फांसी से पहले पवन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ से एक मार्मिक अपील की है. अब तो जीना भी मुश्किल हो गया है, ऐसा कहते हुए पवन एक लेटर में अपनी आपबीती लिखकर सभी को भेज रहा है.

पीढ़ी दर पीढ़ी फांसी देने का काम कर रहा है परिवार

पवन जल्लाद मेरठ की आलोक विहार कालोनी का रहने वाला है. पवन का परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी जेल में फांसी देने का काम करता है. पवन से पहले उसके परदादा लक्ष्मण सिंह, दादा कल्लू जल्लाद और पिता मम्मू सिंह भी फांसी देने का काम करते थे. इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए अब पवन फांसी देता है. पवन का बीवी, बच्चों संग छोटे-बड़े भाइयों वाला परिवार है. निर्भया गैंगरेप केस में दोषियों को फांसी दिए जाने का जिक्र आते ही पवन एक बार फिर से चर्चाओं में आ गया है.

पवन जल्लाद ने लेटर में दर्द बयां किया 



पवन जल्लाद ने बताया कि पिता के बाद से मैं इस काम को विभिन्न जेलों में जाकर अंजाम दे रहा हूं. कुछ समय पहले तक मुझे मेरठ जेल से तीन हजार रुपये महीना मानदेय मिलता था. मेरे अथक प्रयासों के बाद मानदेय बढ़ाकर पांच हजार रुपये मिलने लगा.--------



लेकिन आज की इस महंगाई के दौर में अब पांच हजार रुपये भी नाकाफी साबित हो रहे हैं. परिवार का पालन-पोषण करना कठिन होता जा रहा है. मैं बीते काफी समय से लगातार संबंधित अधिकारियों से मानदेय बढ़ाने के संबंध में गुहार लगा चुका हूं. लेकिन अभी तक इस मामले में मेरी सुनवाई नहीं हुई है.मुश्किल हो गया है बच्चों को पढ़ाना और घर चलाना

पवन जल्लाद का कहना है कि मेरा मकान टूट-फूट गया है. बच्चे बड़े हो गए हैं. उनकी पढ़ाई-लिखाई कराना मुश्किल होता जा रहा है. कई बार तो स्कूल की फीस तक नहीं जा पाती है. इस परेशानी को देखते हुए मेरे बेटे ने इस काम को करने के लिए अभी से मना कर दिया है. आर्थिक परेशानियों के चलते मेरा जीना मुश्किल हो गया है. साइकिल पर कपड़े रखकर गली-गली फेरी लगाता हूं, तब कहीं जाकर दो वक्त की रोटी का जुगाड़ हो पाता है.



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