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क्या चीन के 'डर' से WHO ने छुपाए कोरोना के केस, अब दुनिया झेल रही नतीजा!

यूरोप और अमेरिका में कोरोना की तबाही के बाद WHO पर आरोप लग रहे हैं कि चीन से संबंध अच्छे बने रहें इसके लिए संस्था ने वुहान में आए संक्रमण के हजारों केसों के बावजूद कोरोना को ग्लोबल पेनडेमी घोषित करने में काफी वक़्त लगा दिया.


जिनेवा. कोरोना वायरस (Coronavirus) की गिरफ्त में दुनिया के 196 देश आ गए हैं, ऐसे में अब WHO (World Health orgnisation) की भूमिका पर भी सवाल उठने शुरू हो गए हैं. आरोप लग रहे हैं कि चीन (China) की नाराजगी से बचने के लिए WHO ने भी कोरोना वायरस से जुड़ी चेतावनी और दिशानिर्देश जारी करने में काफी देर कर दी.

WHO पर पहले भी आरोप लगते रहे हैं, साल 2009 में स्वाइन फ्लू (H1N1) के मामले में इसके कदम को ज़रुरत से ज्यादा आक्रामक करार दिया गया था. सभी देशों का मत था कि स्वाइन फ्लू के मामले में इतना हंगामा करने की ज़रुरत नहीं थी. इसके उलट 2015 में अफ्रीकी देशों में इबोला आउटब्रेक के बावजूद भी WHO ने उस तरफ ध्यान नहीं दिया. जब तक WHO ने दुनिया में इबोला के चलते इमरजेंसी की घोषणा की तब तक 11000 मौतें हो चुकी थीं.

इबोला के बाद बनायी थी रैपिड रेस्पोंस टीम
इबोला के मामले में देरी के आरोपों के बाद भविष्य में ऐसी स्थिति न आए इसके लिए WHO ने एक रेपिड रेस्पोंस टीम का भी गठन किया था. इसी टीम ने कांगो में इबोला के नए केस आने के बाद स्थिति को संभाल लिया था. अब दुनिया भर के कोरोना की चपेट में आने के बाद WHO फिर आलोचनाओं से घिर गया है. आरोप है कि चीन के वुहान में कोरोना संक्रमण के हजारों केस आने के बावजूद भी WHO ने न तो दुनिया के बाकी देशों को गंभीरता से इसकी जानकारी दी न ही H1N1 वाले मामले की तरह सक्रिय नज़र आया.


चीन के डर से नहीं दी सूचना!
यूरोप और अमेरिका में कोरोना की तबाही के बाद WHO पर आरोप लग रहे हैं कि चीन से संबंध अच्छे बने रहें इसके लिए संस्था ने वुहान में आए संक्रमण के हजारों केसों के बावजूद कोरोना को ग्लोबल पेनडेमी घोषित करने में काफी वक़्त लगा दिया. वुहान से मिले अनुभव के आधार पर दुनिया के बड़े देशों को काफी पहले ही बड़े पब्लिक स्पेस और टूरिस्ट पर प्रतिबन्ध लगा देनी चाहिए थी लेकिन सभी WHO का इंतज़ार करते रहे और वहां से इस बारे में कोई गाइडलाइन जारी ही नहीं की गई. यूनिवर्सिटी ऑफ़ जिनेवा के इंस्टीट्यूट ऑफ़ ग्लोबल हेल्थ के हेड एंथनी फाल्ट सवाल उठाते हैं कि WHO क्यों चुप रहा और चेतावनी क्यों जारी नहीं की ये गंभीर सवाल है.

WHO का आरोपों से इनकार
उधर WHO चीफ टेडरॉस एडनॉमन ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि हमारी टीम ने कई बार चेतावनी जारी की और देशों को गाइडलाइंस भी दीं. हालांकि दुनिया की कई अन्य बड़ी स्वास्थ्य एजेंसियों ने भी WHO के काम के प्रति संतुष्टि जताई है. यूनिवर्सिटी ऑफ़ एडिनबर्ग के ग्लोबल पब्लिक हेल्थ डिपार्टमेंट में प्रोफ़ेसर देवी श्रीधर कहते हैं- WHO पर सवाल उठाना मुश्किल है, साउथ कोरिया ने संस्था की गाइडलाइंस को अमल में लाया और टेस्ट और सोशल डिस्टेंसिंग पर काफी जोर दिया और नतीजा सभी के सामने है.

WHO पर आरोप इसलिए भी लगे हैं कि उसने 11 मार्च को कोरोना वायरस को महामारी घोषित किया, तब तक दुनिया में इस संक्रमण के 1,20,000 केस सामने आ चुके थे. इतने केस सामने आने के बाद इस तरह के संक्रमण पर काबू पाना बेहद मुश्किल कम हो जाता है. इसके आलावा देश इसके लिए तैयार नहीं थे, ज्यादातर देश मास्क, दस्ताने और वेंटीलेटर की कमी से जूझ रहे हैं. उधर WHO ने कोरोना से निपटने के लिए चीन की सरकार और वहां के डॉक्टर्स की काफी तारीफ की है. हालांकि कई देशों का कहना है कि चीन ने कोरोना संक्रमण की आधिकारिक जानकरी WHO को 31 दिसंबर को ही दे दी थी लेकिन फिर भी इसे लेकर पहला अलर्ट और गाइडलाइंस जारी होने में एक महीने से ज्यादा का समय लिया गया.


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