विश्वविख्यात इं. विश्वेश्वरैया की मदद से माधौ महाराज ने बनाया था तिघरा जलाशय
शहर की लाइफलाइन कहे जाने वाले 100 साल पुराने तिघरा जलाशय का निर्माण 1916 में उस समय के ग्वालियर स्टेट के तत्कालीन प्रमुख माधौ महाराज ने मैसूर रियासत के चीफ इंजीनियर विश्वेश्वरैया की मदद से बनवाया था। वर्ष 1916 में शहर की जनसंख्या 50 हजार के लगभग थी तथा यह बांध करीब 3 लाख आबादी को ध्यान में रखकर बनाया गया था। आज शहर की आबादी लगभग 15 लाख है। वर्तमान में आधे से अधिक शहर को तिघरा से पेयजल की आपूर्ति होती है। प्रदेश सरकार ने ग्वालियर शहर की पेयजल आपूर्ति सुचारू बनाए रखने के लिये अपर ककैटो, ककैटो एवं पहसारी से तिघरा जलाशय को भरने की व्यवस्था की है। तत्कालीन ग्वालियर रियासत के लिए 19 वीं शताब्दी का उत्तरार्ध और 20 वीं शताब्दी की शुरूआत अकालों का अभिशाप लेकर आई थी। रियासत में जंगल भी बहुत थे, नदियां भी पर्याप्त थीं, लेकिन ऐसा कोई साधन नहीं था कि रियासत के जल संसाधनों को आपातकाल के लिए संग्रहित कर रखा जा सके। लिहाजा तत्कालीन महाराजा माधौ महाराज ने फैसला किया कि शहर की प्यास बुझाने और आपातकाल में किसानों को पानी देने लिए एक बड़ा बांध बनाया जाए। नतीजतन 1916 में तिघरा बांध बनाया गया। मैसूर रियासत के चीफ इंजीनियर विश्वेश्वरैया उन दिनों बांध बनाने के मामले में दुनिया के सर्वश्रेष्ठ इंजीनियर थे। उस समय के ग्वालियर स्टेट के तत्कालीन महाराज माधौ महाराज ने उन्हें बांध बनाने की जिम्मेदारी दी। सर्वे के बाद तीन ओर से पहाड़ियों से घिरे सांक नदी के क्षेत्र को बांध के लिए चुना गया। बांध 1916 में बन कर तैयार हो गया। करीब 24 मीटर ऊंचे और 1341 मीटर लंबे इस बांध की क्षमता 4.8 मिलियन क्यूबिक फीट है। इसमें विश्वेश्वरैया ने खुद के ईजाद किए फ्लड गेट लगाए थे, जिन्हे बाद में विश्वेश्वरैया गेट के नाम से पेटेंट भी कराया गया था। तिघरा बांध में 104 साल पहले लगे ये गेट आज भी कारगर साबित हो रहे हैं। इस बांध के आसपास के क्षेत्रों में ग्यारह गाँव आते हैं। ग्रामीण अपने सिंचाई, पीने और घरेलू उद्देश्य के पानी के लिए इस बांध पर निर्भर हैं। इसके अलावा, यह बांध ग्वालियर शहर की लगभग 8 से 10 लाख की आबादी को पीने के पानी की आपूर्ति करता है। तिघरा बांध के पानी को नगर निगम के बडे-बडे जल शोधन संयंत्रों के माध्यम से शोधित कर शहर को नागरिकों को पेयजल के रुप में प्रदाय किया जाता है |