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दुर्गम क्षेत्रों में सीडबाल रोपण से वनावरण बढ़ाने के प्रयास

परम्परागत पौध रोपण के साथ वन विभाग ने प्रदेश के बंजर पहाड़ी और दुर्गम क्षेत्रों में सीडबाल की सहायता से वनावरण बढ़ाने का नवाचार शुरू किया है। सीडबाल में बीज सुरक्षित रहते हैं। वर्षा के सम्पर्क में आने के बाद मिट्टी और पोषकतत्व की उपलब्धता होने से अंकुरित पौधों के जीवित रहने और बढ़ने की संभावना बनी रहती है। साथ ही बीज भी रोपित क्षेत्र में बने रहते हैं। हवा और पानी के साथ बहकर नष्ट नहीं होते। इस विधि में बीज की मात्रा भी कम लगती है।


सीडबाल निर्माण में स्थानीय बीज जैसे हर्रा, बहेड़ा, कुसुम, करंज, जामुन, नीम, ईमली, सिरस, लेडिया,चिरोज, बीजा, आचार, गुग्गल, महुआ, सीताफल, तिन्सा, खैर, बबूल, पलाश, आँवला, तेन्दु, उपचारित सागौन, बाँस और अन्य स्थानीय घास बीजों के सीडबाल बनाकर उपयोग किये जा रहे हैं। वन विभाग ने सीडबाल रोपण तकनीक के बारे में सभी वनमंडलाधिकारियों को विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किये हैं। वन मंडलाधिकारियों से कहा गया है कि अंकुरित पौधे के एक फुट आकार होने पर निन्दाई, गुड़ाई के साथ थाला बनाकर सुरक्षित करें।


निर्देशों में कहा गया है कि प्रत्येक तीन माह में इन पौधों की निगरानी करें जिससे सीडबाल में स्थित बीजों के अंकुरण का परिणाम प्राप्त किया जा सके। अंकुरण एवं पौधों की स्थिति की जानकारी रोपण पंजी में दर्ज करें। मॉनिटरिंग कार्य तीन वर्षों तक किया जाये। सीडबाल निर्माण और रोपण कार्य में स्थानीय लोगों, वन समितियों और संस्थाओं की भागीदारी सुनिश्चित की जा रही है।


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