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मां ने की मजदूरी और बेटे ने मजदूरी और पढ़ाई, दोनो की आज एमएससी कर रहा है (सफलता की कहानी)

संघर्ष की अनोखी मिसाल है मां बेटे










     कहते है कि संघर्ष करने वालो के सामने हर हालात छोटा पड़ जाता है। ऐसा ही एक संघर्ष मां और दो बेटे मिलकर पिछले 15 वर्षों से कर रहे है। वर्ष 2004 में मंजू अपने दो बेटों के साथ अपनी बहन के गांव आ गई थी। आज तक गोलू के पिता ने कभी नही जानना चाहा कि उनका परिवार किन हालातो में है। तब से ये तीनो बुरे से बुरे हालात में एक दूसरे का सहारा बनकर संघर्ष कर रहे है। ठीबगांव बुजुर्ग के 24 वर्षीय गोलू यादव और उनकी मां ने अपनी मेहनत के आगे हालात भी कमजोर साबित कर दिया है। जब गोलू 12वीं में था उस समय रुपयों की सख्त आवश्यकता पड़ी। तब से गोलू ने मजदूरी शुरू कर दी। घर मे उनके अलावा मां और एक छोटा भाई है। मां खरगोन शहर में अधिकारी के घर झाड़ू पोछा और खाना बनाकर दोनो बेटो की शिक्षा में लगी हुई है। 12वीं पास करने के बाद गोलू ने बीएससी कृषि में की। वे यही नही रुके आगे की पढ़ाई के लिए रुपयों की आवश्यकता हमेशा से रही मगर उसकी कभी भी परवाह नही की। क्योंकि वो मजदूरी करना जानता है। इसी हौसले के साथ गोलू उत्तरप्रदेश की बुंदेलखंड विश्वविद्यालय में दाखला ले लिया। करीब दो वर्ष मजदूरी से कमाई राशि से फीस भर कर शिक्षा लेता रहा। इतना ही नही छोटे भाई को भी बीएससी में प्रवेश दिला दिया। अब दोनों भाई मजदूरी कर करके आगे बढ़ते जा रहे है।

मनरेगा कार्य में थीसिस पूरा करने में व्यय होने वाली राषि दिखाई दी

       कोरोना संक्रमण काल से पहले जब गोलू घर आया तो फिर अब तक वापस नही जा सका। फिर गोलू क्या करता गांव में तो कोई काम नही। इसी बीच मप्र शासन ने आर्थिक गतिविधि प्रारम्भ करने के लिए मनरेगा योजना में प्रवासी मजदूरों और स्थानीय श्रमिको को काम देना प्रारंभ किया गया। शासन के इस निर्णय से अन्य मजदूर वर्ग कितना खुश हुआ ये तो कह नही सकते। लेकिन गोलू को एमएससी में थीसिस पूरा करने में व्यय होने वाली राशि दिखाई देने लगी। तुरंत उसने सचिव महेंद्र यादव को आवेदन कर दिया। फिर क्या था? गोलू और छोटा भाई अंकित ने इस अवसर को भुनाया और लगातार मजदूरी कर रहे है। दोनों के खाते में अब तक 2-2 हजार रुपए का भुगतान हो गया है। हालांकि उनके खाते में अभी 4 से 5 सप्ताह की मजदूरी राशि आना शेष है। गोलू बताता है कोई भी काम बड़ा या छोटा नही होता है। मैं मजदूरी कर पढ़ाई कर रहा हूं। एक दिन निश्चित रूप से बेहतर करूंगा। गोलू को इस बात की ज्यादा खुशी है कि इस राशि से वे स्नातकोत्तर के अंतिम सेमेस्टर में थीसिस आसानी से बना लेंगे, वरना लॉकडाउन में घर पर रह कर अक्सर यही चिंता थी कि आगे क्या करेंगे। उनकी यह चिंता मनरेगा ने दूर कर दी। वास्तव में मां और दोनों बेटों की मेहनत और लगन एक दिन जरूर रंग लाएगी। जब गोलू अपना सपना पूरा करेंगे।



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