संस्कृति मंत्री सुश्री ठाकुर द्वारा 'अंडर वाटर ऑर्कियोलॉजी इन इण्डिया' व्याख्यान का शुभारंभ
ईसा पूर्व पहली शताब्दी में गुजरात स्थित भरूच बंदरगाह से उज्जैन के व्यापारी अंतर्राष्ट्रीय व्यापार करते थे। इस क्षेत्र का सामान महिष्मति (आज का महेश्वर) के रास्ते भरूच (तत्कालीन नाम बेरीगाजा) के बंदरगाह पर ले जाकर विदेश भेजा जाता था। यह जानकारी आज 'अंडर वाटर ऑर्कियोलॉजी इन इण्डिया' की वेब सीरीज की चौथी व्याख्यान-माला में मेरीन ऑर्कियोलॉजी के मुख्य तकनीकी अधिकारी डॉ. ए.एस. गौर ने दी। हजारों साल पहले बेहतरीन समुद्र तट होने के कारण विश्व के प्रमुख व्यापारी भारत की ओर सर्वाधिक आकर्षित होते रहे हैं।
संस्कृति मंत्री सुश्री उषा ठाकुर ने 'अंडर वाटर ऑर्कियोलॉजी इन इण्डिया' की वेब सीरीज के चौथे व्याख्यान का शुभारंभ करते हुए कहा कि भारत की गौरवशाली संस्कृति को बिना पुरातत्व के नहीं समझा जा सकता। पुरातत्ववेत्ता ही भारत की गौरवशाली संस्कृति और सभ्यता को विश्व के समक्ष लाये हैं और लाते रहेंगे।
डॉ. गौर ने प्रस्तुतिकरण के माध्यम से बताया कि मध्यकाल में द्वारका प्रमुख बंदरगाह था और यह नगरी हजारों साल से आज भी जीवित है। उन्होंने समुद्र के नीचे बड़ी मात्रा में मिले पूर्व सभ्यता के अवशेषों की रोचक ढंग से विस्तृत व्याख्या की। प्रस्तुतिकरण में श्री गौर ने द्वारका, भेंटद्वारका, मूलद्वारका, सोमनाथ, महाराष्ट्र के केलसी, विजयदुर्ग, गोवा, तमिलनाडु के पुम्पुहार, महाबलीपुरम आदि के समुद्र के अंदर पाये गये अनेक शिल्पों की विस्तृत व्याख्या की। गुजरात में मिले शिल्प 4 से 5 हजार वर्ष पुराने हैं। इसी तरह अन्य समुद्रों में पाये गये शिल्प, औजार, इमारत, पानी के जहाजों के अवशेष आदि दो हजार वर्ष पुराने हैं। समुद्र के भीतर बहुतायत से एंकर (लंगर) मिले हैं, जो हजारों वर्ष पुराने होने के साथ कई चीन, जापान, थाईलैण्ड आदि देशों के भी हैं। संभवत: इन देशों से समुद्री जहाज भारत आते रहे होंगे।
संचालनालय पुरातत्व अभिलेखागार और संग्रहालय द्वारा आयोजित कार्यक्रम का संचालन उप संचालक श्रीमती गीता सभरवाल ने किया। आभार पुरातत्व अधिकारी डॉ. रमेश यादव ने किया।