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पिछड़ी जनजातियों की पोषण सुरक्षा के लिए राज्य शासन प्रतिबद्ध - मुख्यमंत्री श्री चौहान

आहार अनुदान योजना के अंतर्गत भुगतान की नई व्यवस्था का शुभारंभ
2 लाख 19 हजार बहनों के खाते में सिंगल क्लिक से जारी किए 21 करोड़ 97 लाख रूपये


मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि बैगा, भारिया और सहरिया जैसी दूरस्थ अंचलों में रहने वाली विशेष पिछड़ी जनजातियों की महिलाओं और बच्चों के उचित पोषण के लिये दी जाने वाली राशि का भुगतान समय पर किया जाए। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने आज मंत्रालय से आहार अनुदान योजना के तहत 2 लाख 19 हजार महिलाओं के खाते में सिंगल क्लिक से 21 करोड़ 97 लाख 80 हजार रूपए अंतरित कर भुगतान की नई व्यवस्था का शुभारंभ किया। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि प्रतिमाह समय पर राशि का वितरण सुनिश्चित करने के लिए पोर्टल तैयार किया गया है। इससे आगामी माहों के प्रारंभ में ही राशि हितग्राही के खाते में पहुंच जाएगी। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि बैगा, भारिया, सहरिया जैसी पिछड़ी जनजातियों की पोषण सुरक्षा के लिए राज्य शासन प्रतिबद्ध है।


मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि आहार अनुदान योजना 2017 में आरंभ की गई थी, परंतु पिछले लगभग एक साल में हितग्राहियों को राशि नहीं मिल पाई। यह रूकी राशि 43 करोड़ रूपए आगामी सप्ताह में हितग्राहियों के खाते में पहुंच जाएंगी। पिछले ढाई वर्ष में 2 लाख 19 हजार से अधिक बहनों के खातों में 660 करोड़ रूपए पहुंचाए गए हैं। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा है कि प्रदेश की विशिष्ट पिछड़ी जनजातियों बैगा, भारिया और सहरिया के परिवारों को कुपोषण मुक्त बनाने के लिए आहार अनुदान योजना चलाई जा रही है। इसके अंतर्गत परिवार की महिला मुखिया के खाते में प्रतिमाह एक हजार रूपये की राशि भिजवाई जाती है। योजना में प्रदेश के 2 लाख से अधिक जनजाति परिवारों को लाभ मिल रहा है।


बैगाचक की भाजी का स्वाद याद आता है


मुख्यमंत्री श्री चौहान ने आदिवासी महिलाओं से वी.सी. के माध्यम से बातचीत के दौरान कहा कि मुझे आज भी बैगाचक की भाजी का स्वाद याद आता है। जब मैं वहां गया था तो मैंने एक बैगा बहन के हाथ की भाजी खाई थी। बैगाओं की संवदेनशीलता अद्भुत है, वे इसलिए हल नहीं चलाते कि पृथ्वी माँ के सीने में घाव नहीं हो जाए। भारिया जनजाति के साफ-स्वच्छ घर उन्हें आकर्षित करते हैं। सहरिया जनजाति शेर के साथ रहने वाली अत्यंत बहादुर जनजाति है।


बच्चों को पढ़ाओ, मामा साथ है


मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि आदिवासी बहनें अपने बच्चों को खूब पढ़ाएं। पढ़ाई की पूरी व्यवस्था उनका मामा करेगा। इसके साथ ही उनके रोटी, कपड़ा, मकान आदि की व्यवस्था भी सरकार कर रही है।


मैं आऊंगा तो रोटी खिलाओगी


मानपुर-मुरैना की आदिवासी बहन बैकुण्ठी से चर्चा के दौरान मुख्यमंत्री ने जब पूछा कि मैं जब तुम्हारे घर आऊंगा तो रोटी खिलाओगी, तब उसकी प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहा। वह बोली भैया जल्दी आना मैं खाना तैयार रखूंगी। शिवपुरी की रामकली देवी ने राशि मिलने के लिए मुख्यमंत्री के साथ मंत्री श्रीमती मीना सिंह से कहा 'मंत्री मैडम धन्यवाद'।


जो छूट गई हैं उनके नाम जोड़ें


मुख्यमंत्री ने सभी कलेक्टर्स को निर्देश दिए कि विशेष पिछड़ी जाति की जो बहनें योजना में छूट गईं हैं उनके नाम तुरंत जोड़ें। इसके साथ ही जिनके पास आवास नहीं है, उस संबंध में भी कार्रवाई की जाए।


हमारे भैया आ गए तो कैसी चिंता


अशोकनगर की पौनाबाई से जब मुख्यमंत्री ने पूछा कि उन्हें किसी बात की चिंता तो नहीं है, इस पर उन्होंने कहा कि उनके भैया आ गए हैं तो उन्हें कैसी चिंता। आप चले गए थे तो हमारे पैसे आना बंद हो गए थे। मुख्यमंत्री ने आश्वस्त किया कि अब सभी को समय से पैसे मिल जाएंगे।


अब चूल्हे के लिए लकड़ी लेने जंगल नहीं जाना पड़ता


उमरिया जिले की नानबाई बैगा ने मुख्यमंत्री को बताया कि उन्हें योजना के पैसे तो मिल ही गए साथ ही नियमित रूप से राशन भी मिल रहा है। गैस मिल जाने से अब उन्हें चूल्हा नहीं फूंकना पड़ता और लकड़ी लेने के लिए जंगल नहीं जाना पड़ता।


योजना के प्रमुख बिन्दु




  • प्रदेश की विशिष्ट पिछड़ी जनजातियों को कुपोषण मुक्त बनाने के लिए आहार अनुदान योजना लागू है।




  • विशिष्ट पिछड़ी जनजाति में शामिल हैं बैगा, भारिया और सहरिया।




  • योजना के तहत प्रत्येक परिवार की महिला मुखिया के बैंक खाते में प्रतिमाह एक हजार रूपए का भुगतान हो रहा है।




  • प्रदेश के 2 लाख 19 हजार हितग्राहियों को मिल रहा है योजना का लाभ ।




  • 21 करोड़ 97 लाख 80 हजार रूपये सिंगल क्लिक से ट्रांसफर।




  • बैगा - मंडला, शहडोल, डिंडोरी में, भारिया - छिंदवाड़ा, सिवनी, शहडोल, सतना, पन्ना और मंडला में तथा सहरिया - ग्वालियर चंबल संभाग के जिलों में प्रमुखता से निवासरत हैं।




  • प्रदेश में निवासरत 43 जनजातियों में से बैगा, भारिया, सहरिया विशेष पिछड़ी जनजातियां हैं।




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