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श्रीकृष्ण से सम्बंधित आंचलिक लोक संगीत और व्याख्यान केन्द्रित ‘ललित पर्व’ की तीन दिवसीय प्रस्तुति

संस्कृति विभाग, त्रिवेणी कला संग्रहालय, उज्जैन द्वारा श्रीकृष्ण से सम्बंधित आंचलिक लोकसंगीत और व्याख्यान केन्द्रित ‘ललित पर्व’ का प्रसारण सोशल मीडिया प्लेटफार्म http://bit.ly/culturempYT पर हुआ। आज समापन दिवस पर प्रस्तुतियों का आरम्भ मालवी लोकगीत ‘म्हारा बाल गोविंदा जी’ से हुई, तत्पश्चात बघेली लोकगीत ‘नन्द के घर आई बधाई रानी’, बुन्देली लोकगीत ‘बन गए नन्द लला गुदनारे’ और चम्बल क्षेत्र का बृज रसिया  ‘जायो जशोदा ने लल्ला मचो गोकुल में हल्ला’ आदि श्रीकृष्ण के भक्ति लोकगीतों से हुई। उसके पश्चात् श्रीकृष्ण द्वारा गुरु सान्दीपनि से सीखी गई 64 कलाओं और 14 विधाओं पर केन्द्रित चित्र प्रदर्शनी का प्रसारण हुआ और अंत में श्री कैलाशचंद्र पंत, भोपाल द्वारा श्रीकृष्ण का समग्र व्यक्तित्व आधारित ‘व्याख्यान’ प्रस्तुत किया गया। श्री पंत ने कहा कि जैसा कि हम सब जानते हैं कि भारत के लोकजीवन में रचे-बसे तीन महत्वपूर्ण आस्था केंद्र हैं, श्रीराम, श्रीकृष्ण और भगवान शिव। इन तीनों आस्था केन्द्रों में सर्वाधिक आकृष्ट करने वाली श्रीकृष्ण की चरित्र कथाएं हैं जो हमारे जीवन में रच-बस गई हैं। श्रीकृष्ण को अनेक विविधताओं के कारण यह माना गया है कि वह सोलह कलाओं के अवतार हैं, अर्थात पूर्ण अवतार हैं। उन्होंने सूरदास के पदों के उच्चारण के साथ-साथ श्रीकृष्ण द्वारा कालिया मर्दन, और श्री उद्धव जी और गोपियों के प्रसंग पर भी चर्चा की। उन्होंने श्रीकृष्ण जीवन चरित्र का वर्णन करते हुए कहा कि मन की सारी इच्छाओं को एक तरफ रख कर एकाग्र चित्त होकर ईश्वर में ध्यान लगाने से ब्रम्ह की प्राप्ति होगी।  


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