संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री सुश्री उषा ठाकुर ने 18 सितम्बर 1858 को मातृ भूमि के लिये प्राण न्यौछावर करने वाले गोड़वाना के राजा शंकर शाह और पुत्र कुंवर रघुनाथ शाह को श्रद्धांजलि अर्पित की है। अंग्रेजों ने दोनों पिता-पुत्र को इस दिन तोप के मुँह से बाँधकर उड़ा दिया था। सुश्री ठाकुर ने कहा कि मध्यप्रदेश की धरती ने ऐसे अनेक अमर बलिदानी सपूत दिये जिनके रक्त से सिंचित मातृ भूमि में आज हम स्वतंत्रता की साँस ले रहे हैं। मण्डला में बलिदान दिवस पर वृहद कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। इस वर्ष कोविड के चलते सांसद, जन-प्रतिनिधियों और जिला प्रशासन की उपस्थिति में यह कार्यक्रम मनाया जाकर तोप की सलामी दी गई।
उल्लेखनीय है कि 1857 में पूरे भारत में विद्रोह की ज्वाला धधक रही थी। शंकर शाह ने मातृ भूमि को अंग्रेजों से स्वतंत्र कराने के लिये अपने पुत्र रघुनाथ शाह के साथ युद्ध का आव्हान किया। जबलपुर में तैनात कमाण्डर क्लार्क बड़ा क्रूर, अनाचारी और अत्याचारी था। राजा शंकर शाह ने जनता और जमीदारों को साथ लेकर क्लार्क के अत्याचारों को खत्म करने के लिये संघर्ष की घोषणा की। क्लार्क ने अपने गुप्तचरों को साधु भेष में शंकर शाह की तैयारी की खबर लेने गढ़पुरबा महल भेजा। धर्मप्रेमी गोंडवाना (जबलपुर) राजा ने साधुओं के समक्ष अपनी युद्ध योजना उजागर कर दी।
दोनो पिता-पुत्र अच्छे कवि थे। उन्होंने कविताओं द्वारा विद्रोह की आग पूरे राज्य में सुलगा दी। राजा ने एक भ्रष्ट कर्मचारी गिरधारी लाल दास को निष्कासित कर दिया था। वह क्लार्क को इन कविताओं का अर्थ समझाता था। साधु भेष में आये गुप्तचरों ने क्लार्क को सारी योजना बता दी। दो दिन बाद ही अंग्रेजों ने युद्ध की अधूरी तैयारी वाली छावनी को घेर लिया। जनता में आतंक फैलाने के लिये दोनों को तोप के मुँह से बाँध दिया गया। मृत्यु से पूर्व उन्होंने प्रजा को एक-एक छन्द सुनाना चाहा। पहला छन्द राजा शंकर शाह ने और दूसरा पुत्र ने सुनाया।
छन्द पूरा होते ही उन्हें तोप से उड़ा दिया गया। छन्द इस प्रकार है:-
मूँद मूख डण्डिन को चुगलों की चबाई खाई,
खूंद दौड़ दुष्टन को शत्रु संहारिका।
मार अंगरेज रेज कर देई मात चण्डी नचे,
बचे नाहिं बैरी बाल-बच्चे संहारिका।
संकर की रक्षा कर दास प्रतिपाल कर
वीनती हमारी सुन अब मात पालिका।
खाई लेइ मलेच्छन को झेल नाहिं करो अब
भच्छन ततत्छन कर बैरिन कौ कालिका ॥
दूसरा छन्द पुत्र रघुनाथ शाह ने और भी उच्च स्वर में सुनाया।
कालिका भवानी माय अरज हमारी सुन
डार मुण्डमाला गरे खड्ग कर धर ले।
सत्य के प्रकासन औ असुर विनासन कौ
भारत समर मँहि चंण्डिके सँवर ले।
झुण्ड-झुण्ड बैरिन के रुण्ड-मुण्ड झारि-झारि
सोनित की धारन ते खप्पर तू भर ले।
कहै रघुनाथ माँ फिरंगिन को काटि-काटि
किलिक-किलिक मॉ कलेऊ खूब कर ले॥