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"संदर्भ राग भोपाली 2020" गोहर महल से जरी - जरद़ोजी और जूट का नया सफर "विशेष लेख"

   झीलों की नगरी भोपाल में निर्मित कला को प्रदर्शित करने एवं जरी, जूट सामग्री का चयन करते हुए इन्हें भोपाल का ब्रांड प्रस्तुत करने एवं शिल्पियों को बाजार उपलब्ध कराते हुए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने के उद्देश्य से "राग भोपाली" का आयोजन 27 दिसम्बर 2020 से बड़ी झील के किनारे स्थित गौहर महल, में किया जा रहा है। 

   जरी-जरदोजी का काम एक प्रकार की कढ़ाई होती है, जो भारत में प्रचलित है। यह मुगल बादशाह अकबर के समय में और समृद्ध हुई, किंतु बाद में राजसी संरक्षण के अभाव और औद्योगीकरण के दौर में इसका पतन होने लगा। वर्तमान में यह फिर प्रसिद्ध हुई है। अब यह भारत के लखनऊ, भोपाल और चैन्नई आदि कई शहरों में पल्लवित हो रही है। जरदोजी का नाम फारसी से आया है, जिसका अर्थ है, सोने की कढ़ाई। जरी-जरदोजी कला वैसे तो करीब 17वीं सदी से चलन में है। पहले ये बनारस में प्रचलित हुई। फिर करीब 1840 के बाद से भोपाल के अंतिम नवाब हमीदुल्ला खान के समय तक ये कला चलन में रही है। 
   पहले शुद्ध सोने तथा चांदी से जरी बनाई जाती थी और जब साड़ी पहनने लायक नहीं रहती थी तब जलाकर सोना या चांदी इकट्ठा कर लिया जाता था। कालांतर में सोने और चांदी का भाव बहुत बढ़ गया। जिससे सोने - चांदी से जरी बनाना महंगा पड़ने लगा, संयोग से लगभग उसी समय गुजरात के सूरत में बिना सोने चांदी की जरी का निर्माण प्रारंभ हो गया था। यह जरी देखने में बिलकुल असली जरी के जैसी ही थी परन्तु इसकी कीमत असली जरी के दसवें हिस्से से भी कम पड़ती थी। कुछ शिल्पियों ने इस जरी का प्रयोग किया। प्रयोग सफल रहा और धीरे-धीरे असली जरी का स्थान इस जरी ने ले लिया जो वर्तमान मे प्रचलन में है। 
   जूट शब्द संस्कृत के "जटा या जूट से निकला माना जाता है। यूरोप में 18वीं शताब्दी में इस शब्द का प्रयोग मिलता है, यद्यपि वहाँ इस का आयात 18वीं शताब्दी के पूर्व से “पाट" के नाम से होता आ रहा था। जूट के रेशे साधारणत: छह से लेकर दस फुट तक लंबे होते हैं और विशेष अवस्थाओं में 14 से लेकर 15 फुट तक लंबे पाए गए हैं। जूट के रेशे से बोरे, हेसियन तथा पैंकिंग के कपड़े बनते हैं। कालीन, दरियाँ, परदे, घरों की सजावट के सामान, अस्तर और रस्सियाँ भी बनती हैं। वैसे तो जूट पश्चिम बंगाल मे उत्पादित होता है किन्तु वर्ष 1984 मे यूनियन कार्बाइड से गैस रिसाव के बाद भोपाल के नागरिक भारी कार्य करने मे स्वयं को असमर्थ पा रहे थे, भोपाल के नागरिकों को कम मेहनत मे ज्यादा मजदूरी मिल सके इस उद्देश्य से शासन द्वारा गैस राहत विभाग प्रारंभ किया गया जिसके सहयोग से गैस राहत शेड का निर्माण किया गया। म.प्र. हस्तशिल्प एवं हाथकरघा विकास निगम भोपाल में दिसम्बर 1994 से जूट का कार्य गैस राहत शेड गोविन्दपुरा में प्रारंभ किया गया। जिसका धीरे-धीरे मध्यप्रदेश के 15 जिलों मे विस्तार किया गया। जूट के रेशे से सर्वप्रथम जूट चोटी का निर्माण किया जाता है तत्पश्चात् जूट के झूले, हेमक, कुर्सी, मचिया, चारपाई, फाईल कवर, बैग आदि बनाए जाते हैं। निगम द्वारा सामग्री का निर्यात वर्ष 1997-1998 से इंग्लैंड, अमेरिका, आस्ट्रेलिया, नीदरलैंड, इज़राईल, चाईना आदि देशों मे किया जाता रहा है। 
   "राग भोपाली" का आयोजन जिला प्रशासन एवं म.प्र. हस्तशिल्प एवं हाथ कघा विकास निगम भोपाल द्वारा भोपाल के नागरिकों को जरी-जूट से बने हुए सामान एवं भोपाल के शिल्पियों से रूबरू कराना तो है ही साथ ही भोपाल के नागरिकों के लिये प्रसिद्ध व्यंजन जैसे फिरनी, कलाकंद, टोस्ट, सीरमाल, नमक वाली चाय, बाखरखानी आदि उपलब्ध रहेंगे। नागरिकों के मनोरंजन के लिए सांस्कृतिक कार्यकमों जैसे कव्वाली, चारबैत, गज़ल आदि का प्रतिदिन आयोजन भी किया जाएगा। कार्यकम की साज-सज्जा भोपाल मे प्रचलित वस्तुओं और सामग्रयिों द्वारा की जाएगी।

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