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विज्ञान का मूल जनक है भारत : मंत्री सखलेचा

 ऑब्जर्वेशनल एस्ट्रानॉमी का ऑनलाइन शुभारंभ

भारत किसी जमाने में विज्ञान का मूल जनक था। वेदों में विज्ञान संबंधी हर तथ्य का वर्णन मिलता है। आधुनिक इतिहासकारों के विवरण से ऐसा प्रतीत होता है कि विज्ञान पश्चिम की देन है लेकिन हमारे यहां उज्जैन और डोंगला प्राचीन काल में खगोल विज्ञान में अध्ययन और अनुसंधान के समृद्ध और गौरवशाली केंद्र रहे हैं।

ये विचार मुख्य अतिथि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री श्री ओमप्रकाश सखलेचा ने सोमवार को ऑनलाइन ऑब्जर्वेशनल एस्ट्रानॉमी के शुभारंभ अवसर पर कही। मध्यप्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद् (मेपकॉस्ट), भोपाल आईआईटी, इंदौर एवं इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स, बेंगलूरू के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित किया गया है।

मंत्री श्री सखलेचा ने कहा कि हमारे देश में नई पीढ़ी को भारतीय विज्ञान की गौरवशाली उपलब्धियों से परिचित कराने की दिशा में उनका विभाग सक्रिय योगदान दे रहा है।

विज्ञान अध्येता और प्रसिद्ध चिंतक श्री शंकर तत्ववादी ने कहा कि इस कार्यशाला के माध्यम से यह संदेश पहुँचाने का प्रयास होना चाहिये कि भारत की धरती पर खगोल विज्ञान विकसित और समृद्ध हुआ। यह बाहर के देशों से नहीं आया है। मध्य-भारत के उज्जैन और डोंगला जैसे स्थान प्राचीन समय से खगोल विज्ञान में अध्ययन और अनुसंधान कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि स्वदेशी संस्था विज्ञान भारती ने भारतीय विज्ञान को लोगों के बीच पहुँचाने का बीड़ा उठाया है।

परिषद् के महानिदेशक डॉ. अनिल कोठारी ने कहा कि परिषद् खगोल विज्ञान और अंतरिक्ष विज्ञान में अनुसंधानकर्ताओं में बढ़ावा देने के लिए वराहमिहिर वैधशाला डोंगला और उज्जैन तारामंडल की गतिविधियों का विस्तार कर रही है। यहाँ खगोल विज्ञान में इनोवेशन सेंटर स्थापित किया जा रहा है। उज्जैन तारामंडल परिसर में भारत सरकार के सहयोग से क्षेत्रीय विज्ञान केंद्र बनाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि हम इन दोनों स्थानों को अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान करना चाहते हैं।

नेहरू प्लेनेटेरियम, नई दिल्ली की निदेशक डॉ. एन. रतनाश्री ने कहा कि संस्कृत के विद्वान और महाकवि कालिदास ने खगोल विज्ञान और ब्रह्मांडीय घटनाओं से प्रेरित होकर अपने मौलिक साहित्य का सृजन किया था। उन्होंने कहा कि सदियों से खगोल विज्ञान में शोध हो रहा है। उज्जैन और डोंगला में खगोल विज्ञान के जरिये मानव संसाधन को तैयार करने में मदद मिलेगी। आईआईटी, इन्दौर के निदेशक प्रो. नीलेश कुमार जैन ने बताया कि हमारे संस्थान में भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को ध्यान में रखते हुए खगोल विज्ञान में एम.एससी. और पी.एचडी. के पाठ्यक्रम शुरू किये गये हैं। आज विभिन्न देशों में अंतरिक्ष विज्ञान में आगे बढ़ने की प्रतिस्पर्धा है।

कार्यक्रम का समन्वय डॉ. राजेश शर्मा, समूह प्रमुख डोंगला वेधशाला एवं उज्जैन तारामंडल तथा रीजनल साइंस सेंटर ने किया। आईआईटी इंदौर के प्रो. अभिरूप गुप्ता ने इस आयोजन के उद्देश्यों के बारे में जानकारी दी। दूसरे सत्र में भी विशेषज्ञों ने अपने विचार व्यक्त किये।


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