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जैविक खेती अपनाने से महिला किसानों की बढ़ी आमदनी "कहानी सच्ची है"

जैविक खेती अपनाकर फसल का उत्पादन बढ़ाने की दिशा में अब आदिवासी महिलाएं भी आगे आ रही है। जिले के औबेदुल्लागंज विकासखण्ड के ग्राम लुलका की महिलाओं ने तीन साल के प्रयोग और अनुभव खेती को लाभ का धंधा बनाने के साथ अपने जीवन स्तर में भी सुधार किया है। महिलाओं ने कृषि विभाग से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद कृषि विकास योजना के अंतर्गत कलस्टर बनाकर जैविक खेती शुरू की। आत्मा परियोजना औबेदुल्लागंज के श्री डीएस भदौरिया तथा श्री योगेश शर्मा के मार्गदर्शन में 50 महिलाओं के समूह ने 2017 में जैविक खाद बनाने का काम शुरू किया और इस खाद से ही खेती की शुरूआत की। आज इन 50 महिलाओं ने खेती की लागत में 20 प्रतिशत तक कमी की है। साथ ही उत्पादन में भी बढ़ोत्तर की है। समूह से जुड़ी महिलाएं केंचुआ खाद, मटका खाद तथा जैविक कीटनाशक का निर्माण कर खेती में उपयोग कर रही हैं। 
   ग्राम लुलका निवासी काशीबाई, परबो, ललिता, फूलवती, संपत, केसरबाई, भगवती, ममता बाई ने बताया कि जैविक खेती से उनका आत्मविश्वास बढ़ा है। लागत कम हुई और उत्पादन अधिक होने से उनकी कमाई भी बढ़ गई है। उन्होंने बताया कि पहले खेती के लिए उन्हें बाजार से बीज और खाद खरीदना पड़ता था। जैविक खेती से जुड़ने के बाद अब वे खुद अपने लिए बीज तैयार करती है। खुद ही खाद और कीटनाशक बनाती हैं जिससे उन्हें बीज, खाद, कीटनाशक बाजार से नहीं खरीदना पड़ रहा है। महिलाओं ने बताया कि नीम, करंज, अकोआ, धतूरा, सीताफल, बेशरम, यूकेलिप्टिस, बेलपत्ती, मिर्च आदि से वह जैविक कीटनाशक का निर्माण करती हैं। ये सभी वनस्पतियां आसानी से मिल जाती है। सोयाबीन, अरहर व चने में इल्ली की रोकथाम के लिए नीम की पत्ती व निबोली का काढा, गौमूत्र का उपयोग करती हैं। सब्जियों में माहू के नियंत्रण के लिए राख का उपयोग करती है।


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