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मुरैना में बेष्ट प्लास्टिक की सड़क बनाकर नई तकनीकी की उपलब्धी हासिल की (कहानी सच्ची है)

     केन्द्र व राज्य सरकारें शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में बेष्ट प्लास्टिक की सड़कों का निर्माण करके लोंगो के आवागमन में बेहतर सुविधायें उपलब्ध करा रही है।
        मुरैना जिले की अम्बाह रोड़ पर ग्राम खुर्द पर एक किलीमीटर लम्बी प्लास्टिक सड़क का निर्माण करके सड़कों के क्षेत्र में नई तकनीकी उपलब्धी हासिल की है। यह मध्यप्रदेश की दूसरी सड़क है, जिसका निर्माण मुरैना जिले के अम्बाह खुर्द में किया है। इसी तरह की प्रदेश की पहली सड़क भोपाल मार्ग के आष्टा और शुजालपुर में बनाई गई है। इस सड़क का निर्माण पी.आर.जी. जम्मू कश्मीर की कंपनी ने किया है। प्रदेश सरकार की पहल पर बेष्ट प्लास्टिक से मुरैना जिले की नवनिर्मित यह एक किलोमीटर लंबी और 10 मीटर चौड़ी सड़क मात्र 36 लाख रूपये में बनाकर तैयार की है, जो मुरैना के लिये उपलब्धी है।        
    राष्ट्रीय राज्य मार्ग लोक निर्माण विभाग के एसडीओ श्री मनीष कुमार शर्मा द्वारा बताया गया कि बैस्ट प्लास्टिक का डिस्पोजल नहीं हो पा रहा था, यह प्लास्टिक नष्ट भी नहीं हो रही थी। विभिन्न प्रकार की वस्तुओं भरकर इसे रोड़ पर फेंक दिया जाता था, जिसके कारण नालियां एवं नाले अक्सर चौक हुआ करते थे। इसके साथ ही आवारा गौवंश भूख मिटाने के लिये कभी-कभी पॉलीथिन में रखी सामग्री को खाने के साथ-साथ प्लास्टिक को भी खा जाते थे। जिसके कारण कई पशुओं की गंभीर दर्द नाक मौत हुई है। पशुओं की मौत हम सब के लिये चिन्ता का विषय बन्ती जा रही थी। वैज्ञानिकों ने माना कि क्यों न बैस्ट प्लास्टिक काली को रीयूज करके इसे फैक्ट्रियों में पुनः उपयोग में आने वाली प्लास्टिक तैयार नहीं हो सकती। इससे तो (तारकौल) डाबर ही बनाई जा सकती है। विशेयज्ञों ने माना कि डाबर से बनी हुई सड़कों की लाइफ इतनी ज्यादा नहीं चल सकती, बैस्ट प्लास्टिक से अगर सड़क बनाई जाये तो इस सड़क के बनने से लम्बे समय तक रोड़ का रिपेयरिंग करने से मुक्ति मिलेगी और बरसात के समय में भी इस रोड़ का कोई नुकसान नहीं हो सकेगा।
    अब तक भारत के 11 राज्यों में 1 लाख कि.मी. सड़क प्लास्टिक वेस्ट से बन चुकी है। एक किमी रोड में 10 लाख प्लास्टिक बैग जितनी प्लास्टिक की खपत हो जाती है। प्लास्टिक रोड की मेंटेनेंस उम्र 10 साल है। इसमें पानी नहीं रिसता, जिससे गडडे नहीं होते हैं। सामान्य सड़कों से डेढ़ गुना ज्यादा टिकाउ प्लास्टिक रोड सामान्य सड़कों की तुलना में 8 प्रतिशत सस्ती पड़ती है और 66 डिग्री सेल्सियस तापमान तक नहीं पिघलती है। इसी साल पहली बार असम के नेशनल हाइवे में प्लास्टिक वेस्ट का इस्तेमाल शुरू हुआ था। 2004 में पहली बार यह कॉन्सेप्ट चेन्नई ने किया गया था।
    नेशनल हाइवे द्वारा मुरैना, अम्बाह रोड़ पर ग्राम खुर्द पर एक किलोमीटर लंबी प्लास्टिक सड़क का निर्माण कराया गया है। इस सड़क के बनने से बैस्ट प्लास्टिक का उपयोग जो डिस्पोजल नहीं हो सकती थी, उसे डिस्पोजल किया गया। इस रोड़ को पायलेट प्रोजेक्ट के रूप में नेशनल हाइवे ने प्रयोग हाथ में लिया है। इस सड़क के बनने से ग्रामीण लोंगो में खुशी की लहर दौड़ी है, उनका कहना है कि डाबर की रोड़ बरसात के समय बार-बार कट जाती थी, कंक्रीट की रोड़ भी एक गिट्टी निकलने के बाद जगह-जगह गड्डे में तब्दील हो जाती थी, किन्तु प्लास्टिक की रोड़ बनने से यह रोड़ हमाये लिये आजीबन बन गई है और काली बैस्ट प्लास्टिक का भी उपयोग किया गया है। जिस प्लास्टिक को भविष्य में डिस्पोजल नहीं किया जा सकता है, जिस प्लास्टिके सेवन से आवारा गौवंश की मृत्यु हो रही थी। वह अब रोड़ बनने के काम में आई है। अब हमाये क्षेत्र के पशुओं की मृत्यु नहीं होगी और हमें आजीबन के लिये रोड़ प्राप्त हो गई है। 


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