विगत सप्ताह में हुई भारी वर्षा के पश्चात विभिन्न क्षेत्र के कृषकों द्वारा सोयबीन की फसल में अचानक से पीली पड़ने एवं सूखने की सूचना प्राप्त हो रही है। इस समस्या के प्रमुख कारण एवं नियंत्रण के उपाय - सोयबीन में इस वर्ष तना मक्खी एवं गर्डल बीटल का प्रकोप सामान्य से अधिक होने से सोयबीन पीली पड़ रही है। सेमीलूपर की दूसरी पीढ़ी की इल्लियों का प्रकोप भी अधिक देखने में आ रहा है जो पत्तियों के साथ-साथ फलियों को भी क्षति पहुंचा रही हैं। वर्षा के पश्चात अनुकूल मौसम के कारण सोयबीन में एन्थ्रेकनोज एवं राइजोक्टोनिया एरियल ब्लाईट नामक रोगों का संक्रमण बहुत तेजी से फैला है जिसके कारण सोयाबीन के पौधें सूखने लग रहे है। यह समस्या जल्दी पकने वाली प्रजातियों में ज्यादा देखी जा रही है जो कि परिपक्वता की स्थिति में है। इसके अतिरिक्त जहाँ भी तना मक्खी की इल्ली ने तने में 25 प्रतिशत से अधिक सुरंग बना ली है और जहाँ गर्डल बीटल की इल्ली पूर्ण विकसित लगभग पौन इंच हो गई है, वहाँ रसायनों के छिड़काव के पश्चात भी आर्थिक लाभ होने की संभावना कम है। मध्यम एवं देरी से पकने वाली सोयाबीन प्रजातियों में या जहाँ कीट एवं रोग प्रारंभिक अवस्था में हैं।
तना मक्खी एवं गर्डल बीटल के नियंत्रण हेतु कृषकों को सलाह है कि नियंत्रण हेतु बीटासायफ्लुथ्रिन + इमिडाक्लोप्रिड 350 मि.ली./है. या थायमिथोक्सम + लेम्बड़ा सायहेलोथ्रिन 125 मि.ली./है का छिड़काव करें। जहाँ केवल सेमीलूपर इल्लियों का प्रकोप हो रहा है, वहाँ लेम्बडा सायहेलोथ्रिन 4.9 एस.सी. 300 मि.ली./हेक्टेयर या इन्डोक्साकार्ब 15.8 ई.सी. 333 मि.ली./हेक्टेयर या फ्लूबेन्डियामाईड 39.35 एस.सी.150 मि.ली./हेक्टेयर या फ्लूबेन्डियामाईड 20 डब्ल्यू.जी. 275 मि.ली./हेक्टेयर का छिड़काव करें।
एन्थ्रेकनोज एवं राइजोक्टोनया एरियल ब्लाईट नामक रोगों के नियंत्रण हेतु टेबूकोनाझोल 625 मि.ली./है अथवा टेबूकोनझोल + सल्फर 1 कि.ग्रा./हैक्टेयर अथवा पायरोक्लोस्ट्रोबीन 20 डब्ल्यू. जी. 500 ग्रा./है. अथवा हेक्जाकोनाझोल 5 ई.सी. 800 मि.ली./हैक्टेयर से छिड़काव करें।
चूंकि सोयाबीन की फसल अब लगभग 70 दिन की और घनी हो चुकी है। रसायनों का अपेक्षित प्रभाव सुनिश्चित करने के लिए 500 ली. पानी प्रति हेक्टेयर का प्रयोग अवश्य करें। जिन क्षेत्रों में अभी भी जल भराव की स्थिति है, सलाह है कि शीघ्र-अतिशीघ्र अतिरिक्त जल निकासी की समुचित व्यवस्था सुनिश्चित करें।