Type Here to Get Search Results !

खाटू श्याम का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है,

 खाटू श्याम का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है, जब वे भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक थे। 



उन्होंने अपनी माँ से वचन लिया था कि वे हमेशा युद्ध में हारने वाले पक्ष का साथ देंगे। महाभारत युद्ध में, उन्होंने अपनी शक्ति का बलिदान करते हुए अपना शीश श्रीकृष्ण को अर्पित कर दिया। श्रीकृष्ण ने प्रसन्न होकर उन्हें कलयुग में अपने नाम 'श्याम' से पूजे जाने का वरदान दिया। 

खाटू श्याम का इतिहास
  • नाम और पहचान: बर्बरीक का असली नाम था। उनका शरीर नीला था, जिसके कारण भगवान कृष्ण ने उन्हें 'श्याम' नाम दिया। उनके तीन अमोघ बाण थे, जिसके कारण उन्हें 'तीन बाणधारी' भी कहा जाता था।
  • महाभारत युद्ध: अपनी माँ से किए गए वचन को पूरा करने के लिए, बर्बरीक ने युद्ध में हारे हुए पक्ष का साथ देने का फैसला किया था। महाभारत के दौरान, उन्होंने युद्ध के नियमों को देखा और अपनी महान शक्ति और योगदान के कारण श्रीकृष्ण द्वारा उन्हें कलियुग में 'खाटू श्याम' नाम से पूजे जाने का वरदान मिला।
  • शीश का बलिदान: बर्बरीक ने युद्ध में भाग लेने से पहले स्वेच्छा से अपना शीश भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित कर दिया।
  • खाटू गांव में प्रकट: जब बर्बरीक के शीश का प्रकट हुआ, तो वह राजस्थान के खाटू गांव में मिला। कहा जाता है कि यह स्थान आज भी खाटू श्याम जी का निवास स्थान है।
  •  श्रीकृष्ण ने उन्हें यह भी वरदान दिया कि वे हर उस व्यक्ति का सहारा बनेंगे, जो दुख में हो और जिसे कोई उम्मीद न हो। इसी वजह से उन्हें 'हारे का सहारा' भी कहा जाता है।
  • धड़ की पूजा: खाटूश्याम के शीश की पूजा राजस्थान के खाटू में होती है, जबकि उनके धड़ की पूजा हरियाणा के हिसार जिले के बीड़ गांव में होती है।

Post a Comment

0 Comments
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.