खाटू श्याम जी को "हारे का सहारा" इसलिए कहा जाता है क्योंकि महाभारत युद्ध के दौरान, उन्होंने हारने वाले पक्ष का साथ देने की प्रतिज्ञा ली थी।
उन्होंने अपनी माँ को वचन दिया था कि वे युद्ध में उसी का साथ देंगे जो हार रहा होगा। जब कौरवों की सेना कमजोर पड़ने लगी, तो उन्होंने उनकी ओर से लड़ने का फैसला किया, और यह भी विश्वास है कि वे हर उस भक्त का सहारा बनते हैं जो दुख में होता है या हार के कगार पर होता है।
- बर्बरीक (बाद में खाटू श्याम) ने अपनी माँ से वादा किया था कि वे युद्ध में हारते हुए पक्ष का ही साथ देंगे।
- बर्बरीक एक बहुत ही शक्तिशाली योद्धा थे और अगर वे कौरवों की तरफ से युद्ध करते, तो पांडवों की हार तय थी।
- भगवान कृष्ण को यह पता था और इसलिए उन्होंने बर्बरीक का सिर दान में मांग लिया। बर्बरीक ने खुशी-खुशी अपना सिर दान कर दिया।
- बर्बरीक की इस निस्वार्थ भक्ति और बलिदान से प्रसन्न होकर भगवान कृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि कलियुग में वे 'श्याम' के नाम से पूजे जाएंगे और हर हारे हुए व्यक्ति के सहारा बनेंगे।
- आज भी भक्तों का यही विश्वास है कि खाटू श्याम बाबा केवल सुख में ही नहीं, बल्कि विशेष रूप से उन लोगों की सुनते हैं जो संघर्ष में होते हैं, जो हार के करीब होते हैं

