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ताना बाना मुहिम से कालीन उत्पादन के बेहतर परिणाम परिलक्षित हुये (कहानी सच्ची है)

’’महिला स्वसहायता समूहों के माध्यम से कालीन निर्माण का अभिनव प्रयास’’


मुरैना जिले में परम्परागत रूप से उत्कृष्ठ स्तर के कालीन, फर्शदान एवं गलीचे बनाये जाते हैं। यह कार्य मुख्य रूप से ग्राम कांजी बसई, अलापुर एवं धुर्रा में बुनकरों द्वारा किया जाता है । इस कार्य को और अधिक बढ़ावा देने के लिये गत वर्ष ताना बाना नाम से शुरू की गई मुहिम से कालीन उत्पादन में बेहतर परिणाम परिलक्षित हो रहे है। महिला स्व-सहायता समूहों के माध्यम से ताना बाना मुहिम के चलते कालीन निर्माण में अभिनव प्रयास हुये है। इस मुहिम के चलते 200 और महिलाओं के स्व सहायता समूहों का गठन करके कालीन व्यवसाय में पारंगत बनाया है। हेण्डलूम से निर्मित इन कालीनेां की बुनाई और डिजाइन राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर के हैं ,परन्तु पर्याप्त संसाधनेां एवं मार्केटिंग के अभाव में यह कार्य लोगों की नजरों से दूर ही रहा है । कालीन निर्माण के इस कार्य को लाभ का व्यापार बनाने के लिए महिलाओं के स्व सहायता समूहों को इस कार्य में लगाया जारहा है । वर्तमान में जिला पंचायत द्वारा ऐसे 12 स्व सहायता समूह बनाये गये हैं ,जिनकी महिलाएं हेण्डलूम पर न सिर्फ इन कालीनों का निर्माण करती हैं, बल्कि और भी महिलाओं को इस कार्य में जोडने के लिए प्रोत्साहित करती हैं । ग्रामीण आजीविका मिशन द्वारा महिलाओं को उपलब्ध कराये गये बैंक लोन  एवं शासकीय धनराशि की क्रियाशील पूंजी कालीन निर्माण के इस कार्य में हेण्डलूम स्थापना तथा कालीन निर्माण के लिए कच्चे माल को खरीदने के लिए काम आएगी. इस  क्रियाशील पूंजी से कालीन निर्माण के काम को गति देने के साथ-साथ स्व सहायता समूह की महिलाएं आर्थिक रुप से स्वाबलंबी भी बनेंगी  ।  12 महिला स्व सहायता समूह के जुडने से कालीन निर्माण के इन कार्यो में प्रगति आई है । ग्रामीण आजीविका मिशन मुरैना इस वर्ष 200 और महिलाओं के स्व सहायता समूह गठित कर रहा है,जिन्हें प्रशिक्षण देते हुए कालीन बनाने के कार्य में नियोजित किया जायेगा। इससे न सिर्फ महिलाओं की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा तथा वे स्वावलम्बी बनेंगी ,वल्कि मुरैना जिले के इन ग्रामों में परम्परागत रूप से बनाये जारहे कालीनों का उत्पादन भी बढेगा । गत वर्ष ’’ताना बाना’’ नाम से शुरू की गई जिला प्रशासन की इस मुहिम का असर देखने लगा है । इन तीनों ग्रामों में कालीन एवं फर्शदान के निर्माण कार्य में प्रगति हुई है तथा कई महिलाऐं इस कार्य को करने के लिए आगे आई हैं । कैमीकल ट्रीटमेंट और कटिंग के बाद ये कालीन राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर के उत्कृष्ठ कालीनों के बराबर गुणवत्ता के बन जाते हैं,जिसके कारण बाजार में इनकी मांग बनी रहती है । मार्केटिंग के लिए जिला पंचायत के सीईओ के द्वारा बताया गया कि ग्रामीण आजीविका मिशन के लोगो तथा ग्राम के नाम पर इन कालीनों को बेचने, नवीन तकनीकों का प्रयोग किया जारहा है । इसके साथ ही महिलाओं को बैंक से लोन दिलवाकर केमीकल ट्रीटमेंट एवं कटाई का कार्य उनके स्तर पर ही क्रियान्वयन की कोशिशें की जारही हैं, ताकि उत्पादित कालीन का अच्छा मूल्य उन्हें प्राप्त हो सके । उनके द्वारा यह भी अवगत कराया गया कि हेण्डलूम को पावरलूम में परिवर्तित करने का प्रयास भी किया जा रहा है, ताकि उत्पादन को बढाया जा सके । वर्तमान में कोरोंना की स्थिति में कालीन व्यापार पर पडे प्रतिकूल प्रभाव के बावजूद इस उद्योग में महिलाओं को जोडने व स्व सहायता समूह गठित कर इस कार्य को करने के लिए आगे आना एक महत्वपूर्ण बात है। जिले में कालीन निर्माण को गति देने के लिए नए आकार प्रकार के तथा नए डिजाइन के कालीन बनाने के लिए भी स्व सहायता समूहों की इन महिलाओं को प्रशिक्षित किए जाने के प्रयास किए जारहे हैं।


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